असम की कामाख्या देवी के समान है तांत्रिक प्रतीकों से सुसज्जित भगदेई वाली माँ भगदेवी की प्रतिमा
नवरात्रि विशेष
शिवलाल यादव , कमल याज्ञवल्क्य
सिलवानी। मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में धार्मिक और पुरातात्विक महत्व के कई दुर्लभ स्थान हैं। ऐसे ही एक स्थान बरेली राजस्व अनुविभाग के भगदेई गांव की मां भगदेवी की महिमा निराली हैैै। विभिन्न तांत्रिक प्रतीकों से सुसज्जित प्राचीन मठ की अधिष्ठात्री मां अपने अद्भुत चमत्कारों के लिए विख्यात हैं। धार्मिक व त तांत्रिकों क्षेत्र के साधकों के लिए यह स्थान आसाम के प्रसिद्ध मां कामाख्या देवी धाम जैसा ही है।
बड़े तीर्थ स्थल के रूप में मशहूर…
इतिहास और पुरातत्व के विद्वानों के अनुसार कभी यह क्षेत्र बड़े तीर्थ के रूप में जाना जाता रहा है। माँ अंबेरानी की महिमा अपरंपार है। मां भगवती की चमत्कारी कथाओं से धर्म ग्रन्थ भरे हैं। मान्यता और किवदंतियों को लेकर भी कथाएं प्रचलित हैं। नवरात्र पर्व पर चित्रकूट धाम से पधारे सेनि शिक्षाविद पंडित चन्द्रदत्त त्रिपाठी ने भगदेई के प्राचीन देवीमठ में माँ की पूजा करने के बाद बताया कि माँ का यह धाम मनोकामना पूर्ण करने वाला है।
मां के चरणों में शीश चढ़ाते थे पुजारी
विंध्याचल की तलहटी में तालाब किनारे स्थित अत्यंत प्राचीन देवी माँ का तांत्रिक मठ है। विभिन्न तांत्रिक प्रतीकों से सुसज्जित इस मठ में प्रवेश करते ही अद्भुत अनुभव होने लगते हैं। दशकों से यहां पूजा कर रहे पुजारी पंडित महेंद्र शर्मा बताते हैं कि एक किवदंती के अनुसार इस मठ में सैकड़ों वर्ष पहले ऐसे पुजारी साधना किया करते थे जो मां की पूजा के पश्चात अपना शीश मां के चरणों में अर्पित कर दिया करते थे। देवी माँ दुर्गा की कृपा से वे पुनः जीवित हो जाते थे। किवदंती के अनुसार एक बार देवी माँ ने पुजारी से कहा कि अब उन्हें इसकी आवश्यकता नहीं है। देवी माँ का यह हठी भक्त नहीं माना और उसने कहा कि मां तुम्हें कष्ट होता है तो मुझे भी अब जीवन की आवश्यकता नहीं है। एक दिन अनुष्ठान के उपरांत पुजारी ने पुनः वही क्रिया करते हुए स्वयं का शीश सदैव के लिए देवी माँ के चरणों में अर्पित कर दिया।
परंपरा और मान्यताएं भी विचित्र
यह प्राचीन देवीमठ जितना चमत्कारी है । इससे जुड़ी परंपरा और मान्यताएं भी उतनी ही विचित्र हैं। यहां नवरात्रि में अनुष्ठान कर रहे पंडित सुजय शर्मा ने बताया कि मां का यह दिव्य धाम है ही अनूठा। पटेल हरिमोहन शर्मा ने बताया कि इस नवरात्र के शुरू में ही हमें देवीमठ में झाड़ू पोंछा लगाने का सौभाग्य मिला। वे कहते हैं कि हम महीनों तक यहां आने की सोचते हैं किन्तु आ नहीं पाते। जब मां भगवती की मर्जी होती है तब ही आ पाते हैं।
भाव के अनुरूप हैं भगदेई की भवानी माता: जगतगुरु पंडित स्वरूपानंद सरस्वती महाराज
एक धार्मिक समारोह में अप्रैल 1995 में भगदेई पधारे पूज्य शंकराचार्य जगतगुरु स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती महाराज ने भगदेई के इस तांत्रिक मठ की अधिष्ठात्री देवी माँ की पूजा अर्चना के बाद भक्तों को बताया था कि मां तेजोमयी हैं। मां महिषासुर मर्दिनी की यह विशेषता है कि यह भक्तों के भाव के अनुरूप हैं। किसी के लिए यह बच्चों जैसी हैं तो किसी के लिए सम्पूर्ण परिवार की मुखिया के रूप में है। इस देवीमठ की अधिष्ठात्री देवी माँ के स्वरूप और नाम को लेकर अलग अलग तंत्रमार्गी अलग- अलग व्याख्याएं करते हैं। अनेक विद्वान और तपस्वी संत भी मां के इस स्वयं सिद्ध धाम को अत्यंत प्राचीन सिद्ध मठ मानते हैं। आज भी मां के इस मठ में पहुंचते ही भक्तों को असीम आनंद का अनुभव होने लगता है। ठेकेदार मनीष शर्मा ने बताया कि आज भी मां की कृपा से भक्तों के मनोरथ पूरे होते हैं। बुजुर्गों ने बताया कि काफी समय पहले यहां देवी मां की सेवा करने वाले पुजारी रहे जलधारी महाराज और सिंगाजी परिवार के समर्थ संत बालूदास जी महाराज भी मां की कृपा से चमत्कारों के लिए जाने जाते रहे हैं।
