धार्मिक

Today Panchang आज का पंचांग रविवार, 15 जून 2025

आचार्य श्री गोपी राम (ज्योतिषाचार्य) जिला हिसार हरियाणा मो. 9812224501
✦••• जय श्री हरि •••✦
🧾 आज का पंचांग 🧾
रविवार 15 जून 2025
आप सभी सनातनियों को सूर्य संक्रांति के शुभ अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं।।
भगवान सूर्य जी का मंत्र : ऊँ घृणि सूर्याय नम: ।।
🌠 रविवार को की गई सूर्य पूजा से व्यक्ति को घर-परिवार और समाज में मान-सम्मान की प्राप्ति होती है। रविवार के दिन उगते हुए सूर्य को देव को एक ताबें के लोटे में जल, चावल, लाल फूल और रोली डालकर अर्ध्य करें।
इस दिन आदित्य ह्रदय स्रोत्र का पाठ करें एवं यथा संभव मीठा भोजन करें। सूर्य को आत्मा का कारक माना गया है, सूर्य देव को जल देने से पितृ कृपा भी मिलती है।
रविवार के दिन भैरव जी के दर्शन, आराधना से समस्त भय और संकट दूर होते है, साहस एवं बल की प्राप्ति होती है। रविवार के दिन जी के दर्शन अवश्य करें ।
रविवार के दिन भैरव जी के मन्त्र ” ॐ काल भैरवाय नमः “ या ” ॐ श्री भैरवाय नमः “ की एक माला जाप करने से समस्त संकट, भय दूर होते है, रोगो, अकाल मृत्यु से बचाव होता है, मनवांछित लाभ मिलता है।
🔮 शुभ हिन्दू नववर्ष 2025 विक्रम संवत : 2082 कालयक्त विक्रम : 1947 नल
🌐 कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082,
✡️ शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), चैत्र
☮️ गुजराती सम्वत : 2081 नल
👸🏻 शिवराज शक 352_

☸️ काली सम्वत् 5126
🕉️ संवत्सर (उत्तर) क्रोधी
☣️ आयन – उत्तरायण
☂️ ऋतु – सौर ग्रीष्म ऋतु
☀️ मास – आषाढ़ मास
🌔 पक्ष – कृष्ण पक्ष
📅 तिथि – रविवार आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि 03:51 PM तक उपरांत पंचमी
✏️ तिथि स्वामी – चतुर्थी के देवता हैं शिवपुत्र गणेश। इस तिथि में भगवान गणेश का पूजन से सभी विघ्नों का नाश हो जाता है। यह खला तिथि हैं।
💫 नक्षत्र – नक्षत्र श्रवण 12:59 AM तक उपरांत धनिष्ठा
🪐 नक्षत्र स्वामी – श्रवण नक्षत्र का स्वामी ग्रह चंद्र है और इसका देवता विष्णु हैं. और ज्ञान तथा विद्या प्रदान करने वाली सरस्वती इसकी देवी हैं।
⚜️ योग – इन्द्र योग 12:19 PM तक, उसके बाद वैधृति योग
प्रथम करण : बालव – 03:51 पी एम तक
द्वितीय करण : कौलव – 03:44 ए एम, जून 16 तक तैतिल
🔥 गुलिक काल : रविवार को शुभ गुलिक काल 02:53 पी एम से 04:17 पी एम
🤖 राहुकाल (अशुभ) – सायं 4:51 बजे से 6:17 बजे तक। राहु काल में शुभ कार्य करना वर्जित माना गया है।
⚜️ दिशाशूल – रविवार को पश्चिम दिशा की यात्रा नहीं करनी चाहिये, यदि अत्यावश्यक हो तो पान एवं घी खाकर यात्रा कर सकते है।
🌞 सूर्योदयः- प्रातः 05:13:00
🌄 सूर्यास्तः- सायं 06:47:00
👸🏻 ब्रह्म मुहूर्त : 04:03 ए एम से 04:43 ए एम
🌇 प्रातः सन्ध्या : 04:23 ए एम से 05:23 ए एम
🌟 अभिजित मुहूर्त : 11:54 ए एम से 12:50 पी एम
🔯 विजय मुहूर्त : 02:41 पी एम से 03:37 पी एम
🐃 गोधूलि मुहूर्त : 07:19 पी एम से 07:39 पी एम
🌌 सायाह्न सन्ध्या : 07:20 पी एम से 08:21 पी एम
💧 अमृत काल : 02:19 पी एम से 03:58 पी एम
🗣️ निशिता मुहूर्त : 12:02 ए एम, जून 16 से 12:42 ए एम, जून 16
🚓 यात्रा शकुन-इलायची खाकर यात्रा प्रारंभ करें।
👉🏼 आज का मंत्र-ॐ घृणि: सूर्याय नम:।
💁🏻 आज का उपाय-विष्णु मंदिर में आठ बादाम चढ़ाएं।
🪵 वनस्पति तंत्र उपाय-बेल के वृक्ष में जल चढ़ाएं।
⚛️ पर्व एवं त्यौहार : रविगोचर/मिथुन संक्रांति/ श्री गणेश संकष्ट चतुर्थी चन्द्र उदय 10.02/ विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस, राष्ट्रीय फोम पार्टी दिवस, राष्ट्रीय मुस्कान शक्ति दिवस, राष्ट्रीय लॉबस्टर दिवस, वैश्विक पवन दिवस, बीयर दिवस ब्रिटेन,, Kainchi Dham स्‍थापना द‍िवस, फादर्स डे, दीक्षित हिन्दू संप्रदाय ‘राधा स्वामी सत्संग’ के संस्थापक शिव दयाल साहब स्मृति दिवस, भारतीय उद्योगपति लक्ष्मी मित्तल जन्म दिवस, समाज सेवक अन्ना हजारे जन्म दिवस, वैश्विक पवन दिवस
✍🏼 तिथि विशेष – चतुर्थी तिथि को मूली एवं पञ्चमी तिथि को बिल्वफल त्याज्य बताया गया है। इस चतुर्थी तिथि में तिल का दान और भक्षण दोनों त्याज्य होता है। इसलिए चतुर्थी तिथि को मूली और तिल एवं पञ्चमी को बिल्वफल नहीं खाना न ही दान करना चाहिए। चतुर्थी तिथि एक खल और हानिप्रद तिथि मानी जाती है। इस चतुर्थी तिथि के स्वामी गणेश जी हैं तथा यह चतुर्थी तिथि रिक्ता नाम से विख्यात मानी जाती है। यह चतुर्थी तिथि शुक्ल पक्ष में अशुभ तथा कृष्ण पक्ष में शुभफलदायिनी मानी गयी है।
ॐ* Vastu Tips 🛟
इस दिशा में बनाएं स्वास्तिक आप हल्दी या सिंदूर से स्वास्तिक का चिन्ह बना सकते हैं। अगर दिशा की बात करें तो इस काम के लिए उत्तर-पूर्व दिशा सबसे अच्छी है। आप स्वास्तिक का चिन्ह पूजा के स्थान पर या घर के मुख्य द्वार पर भी बना सकते हैं। ऐसा करने से देवी मां की कृपा से शुभ फल तो मिलते ही हैं, साथ ही वास्तु संबंधी समस्या के निगेटिव इफेक्ट से भी छुटकारा मिलता है। स्वास्तिक का चिन्ह घर में पॉजिटिविटी लाने वाला होता है।
स्वास्तिक बनाते समय इस बात का रखें ध्यान घर के मुख्य द्वार और मंदिर में स्वास्तिक बनाने से वास्तु दोष दूर होता है। इन दोनों जगहों पर हल्दी से स्वास्तिक बनाएं और उसके नीचे शुभ लाभ लिख दें। ऐसा करने से आपके घर में हमेशा सकरात्मकता बनी रहेगी। साथ देवी लक्ष्मी की कृपा भी बनी रहेगी। ध्यान रखें कि स्वास्तिक का चिन्ह 9 उंगली लंबा और चौड़ा होना चाहिए।
🔰 जीवनोपयोगी कुंजियां ⚜️
यहाँ कुछ उपचार बताये है जो चिंता दूर कर मन शांत करने में मदद कर सकते है।
बादाम का दूध 8-10 कच्चे बादाम रात भर पानी में भिगोकर रखे। छिलके निकालकर बादाम ब्लेंडर में डाले। इस में 1 कप गर्म दूध, एक चुटकी अदरक और जायफल डाले और पिए। बादाम, विटामिन ई और मैग्नीशियम से भरपूर होते है जो चिंता कम करने में मदद करते है।
ग्रीन टी कैफीन का ज्यादा सेवन एंग्जायटी या चिंता को ट्रिगर कर सकता है। इसीलिए चाय या कॉफी के बजाय ग्रीन टी का नियमित सेवन करे।
ग्रीन टी में कैफीन कम और एंटीऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में होते है। इसमें थीनिन नामक एक एमिनो एसिड होता है जो न्यूरोट्रांसमीटर सेरोटोनिन और डोपामाइन के उत्पादन को बढ़ाता है और चिंता कम करने में मदत करता है।
हल्दी करक्यूमिन, हल्दी का एक सक्रिय यौगिक, मस्तिष्क में ओमेगा -3 फैटी एसिड डीएचए को बढ़ा सकता है। यह एंटीऑक्सिडेंट स्तर को भी बढ़ाता है और चिंता विकारों को रोकने में मदद करता है।
हल्दी को रोजाना खाना बनाने में इस्तेमाल करे। कच्ची हल्दी पाउडर का आधा चम्मच लेने या करक्यूमिन कैप्सूल लेने से चिंता के लक्षणों को कम करने में सहायता होती है।
💉 आरोग्य संजीवनी 🩸
🔍 पैरों में गुदगुदी और दर्द एकसाथ क्यों होते हैं? न्यूरोपैथी यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें शरीर की तंत्रिकाएं प्रभावित हो जाती हैं। विशेषकर डायबिटीज़ या बीपी के रोगियों में यह समस्या सामान्य होती जा रही है। इसमें पैरों में:
गुदगुदी जैसी जलन, झनझनाहट, सुई चुभने जैसा दर्द, और कभी-कभी सुन्नपन भी महसूस होता है।
➡️ गंभीर चेतावनी: अगर आप बिना किसी वजह के ऐसे लक्षण महसूस कर रहे हैं, तो ये तंत्रिका क्षति (nerve damage) का संकेत हो सकता है।
रक्त संचार की गड़बड़ी अगर आपके पैरों तक खून पूरी तरह नहीं पहुंच रहा है, तो वहां की तंत्रिकाएं ऑक्सीजन और पोषण की कमी से प्रभावित होती हैं। इससे संवेदनशीलता बढ़ जाती है और हल्का सा स्पर्श भी दर्द या गुदगुदी का कारण बन सकता है।
सिटिक नर्व पर दबाव कई बार रीढ़ की हड्डी या कमर के निचले हिस्से से जुड़ी नसों पर दबाव पड़ने से पैरों तक तीव्र गुदगुदी और चुभन जैसे दर्द पहुंचते हैं।
अनफिट जूते और गलत बैठने की आदतें: अगर आप टाइट जूते पहनते हैं या घंटों गलत मुद्रा में बैठते हैं, तो नसों पर दबाव बनता है। ये लगातार दबाव पैरों में सूजन, जलन और गुदगुदी जैसे दर्द का कारण बन सकता है।
📚 गुरु भक्ति योग_ 🕯️
जब नन्द महाराज घर लौट रहे थे, तो उन्होंने वसुदेव द्वारा दी गई इस चेतावनी पर कि गोकुल में कुछ उत्पात हो सकता है विचार किया। निश्चय ही यह सलाह मैत्रीपूर्ण थी और असत्य न थी। अतः नन्द ने सोचा, “इसमें अवश्य ही कुछ न कुछ सच्चाई है।”
अतः डर के मारे वे भगवान् की शरण लेने लगे। संकट आने पर भक्त के लिए स्वाभाविक है कि वह कृष्ण का चिन्तन करे क्योंकि उसके लिए अन्य कोई आश्रय नहीं होता।
जब शिशु संकट में होता है, तो अपने माता-पिता का आश्रय लेता है। इसी प्रकार भक्त सदैव भगवान् की शरण में रहता है, किन्तु जब उसे कोई विशेष संकट दिखता है, तो वह तुरन्त ईश्वर का स्मरण करता है।
अपने मंत्रियों से मंत्रणा करने के बाद कंस ने पूतना नामक डाइन (राक्षसी ) को, जो छोटे- छोटे बच्चों को अत्यन्त नृशंसतापूर्वक मारने का इन्द्रजाल जानती थी, आदेश दिया कि वह शहरों, ग्रामों तथा चरागाहों में जाकर सारे बच्चों का वध कर दे।
ऐसी डाइनें अपना इन्द्रजाल वहीं फैला सकती हैं जहाँ कृष्ण के पवित्र नाम का कीर्तन या श्रवण न होता हो। कहा जाता है कि जहाँ कहीं कृष्ण के पवित्र नाम का कीर्तन होता है, चाहे वह उपेक्षा से ही क्यों न हो, वहाँ से सारे बुरे तत्त्व-डाइनें, भूत-प्रेत तथा संकट-तुरन्त भाग जाते हैं।
और जहाँ कृष्ण के पवित्र नाम का कीर्तन गम्भीरता से होता हो, विशेष रूप से वृन्दावन में जहाँ परमेश्वर स्वयं उपस्थित थे, वहाँ तो यह सर्वथा सत्य है। अत: नन्द महाराज के सारे सन्देह निश्चित रूप से कृष्ण प्रेम पर ही आधारित थे।
वास्तव में पूतना में शक्ति होते हुए भी उसकी गतिविधियों से कोई भय न था। ऐसी डाइनें “खेचरी” कहलाती हैं जिसका अर्थ है वे जो आकाश में उड़ सकती हैं। इस तरह का इन्द्रजाल आज भी कुछ स्त्रियों द्वारा भारत के उत्तर पश्चिमी भाग में किया जाता है। वे उखड़े वृक्ष की शाखाओं पर बैठकर एक स्थान से दूसरे तक आ-जा सकती हैं। पूतना को यह इन्द्रजाल ज्ञात था इसलिए भागवत में उसे ‘खेचरी’ कहा गया है।
पूतना किसी प्रकार की अनुमति के बिना ही गोकुल में नन्द के आवास महल में घुस गई। सुन्दर वस्त्रों से आभूषित होकर वह परम सुन्दरी के रूप में माता यशोदा के घर में गई। अपने उठे हुए नितम्बों, उन्नत उरोजों, कान की बालियों तथा केश में लगे फूलों से वह अतीव सुन्दर लग रही थी। अपनी क्षीण कटि से वह और भी सुन्दर बन गई थी। उसकी आकर्षक चितवन तथा मन्द मुसकान से वृन्दावन के सारे वासी मोहित हो गये।
भोली-भाली गोपियों ने सोचा कि वह हाथ में कमल पुष्प धारण किये वृन्दावन में आई साक्षात् लक्ष्मी देवी है। उन्हें लगा कि वह अपने पति कृष्ण को देखने के लिए स्वयं आई हैं। उसकी अपूर्व सुन्दरता के कारण उसे किसी ने रोका नहीं, अत: वह बिना रोकटोक के नन्द महाराज के घर में प्रविष्ट हो गई।
अनेकानेक बालकों का वध करने वाली पूतना ने कृष्ण को पालने में लेटा देखा। वह तुरन्त समझ गई कि इस नन्हें बालक में अद्वितीय शक्ति है, जो राख से
ढकी अग्नि की भान्त छिपी है। उसने सोचा “यह बालक तो इतना शक्तिशाली है कि क्षण भर में सारे ब्रह्माण्ड को नष्ट कर सकता है।”
पूतना की समझ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। भगवान् श्रीकृष्ण प्रत्येक प्राणी के हृदय में स्थित हैं। भगवद्गीता में कहा गया है कि वे मनुष्य को आवश्यक बुद्धि प्रदान करने वाले तथा विस्मृति उत्पन्न करने वाले हैं।
पूतना को तुरन्त पता चल गया कि जिस बालक को वह नन्द के घर में देख रही है, वह साक्षात् श्रीभगवान् है। वे वहाँ नन्हे बालक के रूप में लेटे थे, किन्तु इसका अर्थ यह नहीं था कि वे कम शक्तिशाली थे।
यह भौतिकतावादी सिद्धान्त, कि ईश्वर-पूजा विकासवादी है, ठीक नहीं है। कोई भी मनुष्य ध्यान या तपस्या द्वारा ईश्वर नहीं बन सकता। ईश्वर सदैव ईश्वर रहता है। कृष्ण बालक के रूप में उतना ही पूर्ण है जितना एक विकसित
युवक । मायावादी सिद्धान्त के अनुसार जीवात्मा प्रारम्भ में ईश्वर था, किन्तु अब वह माया के प्रभाव से अभिभूत हो गया है, अत: मायावादी मानते हैं कि इस समय वह ईश्वर नहीं है, किन्तु माया का प्रभाव हटा लेने पर वह पुनः ईश्वर हो जाता है।
यह सिद्धान्त सूक्ष्म जीवात्माओं पर लागू नहीं हो सकता। जीवात्माएँ श्रीभगवान् के क्षुद्र अंश हैं, वे मूल अग्नि के क्षुद्र अंश या चिंगारियाँ हैं। अत: वे माया के प्रभाव से ढ़के जा सकते हैं, किन्तु कृष्ण नहीं। कृष्ण तो श्रीभगवान् हैं, यहाँ तक कि वसुदेव तथा देवकी के घर में जन्म लेने के समय से ही कृष्ण श्रीभगवान् हैं।
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⚜️ चतुर्थी तिथि में तिल का दान और भक्षण दोनों भी त्याज्य है। आज गणपति, गजानन, विघ्नहर्ता श्री गणेशजी की पूजा का विशेष महत्त्व है। आज गणपति की पूजा के उपरान्त मोदक, बेशन के लड्डू एवं विशेष रूप से दूर्वादल का भोग लगाना चाहिये इससे मनोकामना की सिद्धि तत्काल होती है। शास्त्रानुसार जिस व्यक्ति का जन्म चतुर्थी तिथि को होता है वह व्यक्ति बहुत ही भाग्यशाली होता है। चतुर्थी तिथि में जन्म लेने वाला व्यक्ति बुद्धिमान एवं अच्छे संस्कारों वाला होता है। ऐसे लोग अपने मित्रों के प्रति प्रेम भाव रखते हैं तथा इनकी सन्तानें अच्छी होती है। इन्हें धन की कमी का सामना नहीं करना पड़ता है और ये सांसारिक सुखों का पूर्ण उपभोग करते हैं।

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