वासुदेव द्वादशी: भगवान विष्णु को प्रसन्न करने का विशेष दिन, जानें पूजा की विधि

Astologar Gopi Ram : आचार्य श्री गोपी राम (ज्योतिषाचार्य) जिला हिसार हरियाणा मो. 9812224501
|| जय श्री राधे ||
🪙 वासुदेव द्वादशी: भगवान विष्णु को प्रसन्न करने का विशेष दिन, जानें पूजा की विधि
🔘 HEADLINES
▪️ वासुदेव द्वादशी 7 जुलाई को मनाई जाएगी.
▪️ इस दिन भगवान विष्णु और लक्ष्मी की पूजा करें.
▪️ सर्वार्थ सिद्धि योग में व्रत और दान करें.
🧾 सनातन धर्म में अनेक ऐसे व्रत और त्यौहार हैं जो भगवान विष्णु को समर्पित हैं, और इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण व्रत है वासुदेव द्वादशी। यह व्रत भगवान वासुदेव (भगवान कृष्ण के पिता वसुदेव) और माता देवकी को समर्पित है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और विधि-विधान से पूजा करने पर संतान सुख की प्राप्ति होती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। आइए, इस लेख में हम वासुदेव द्वादशी 2025 की तिथि, व्रत विधि, नियमों और आवश्यक पूजा सामग्री की सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करते हैं।
📆 वासुदेव द्वादशी 2025 – तिथि और महत्व
शास्त्रों के अनुसार, महर्षि नारद ने माता देवकी को इस व्रत का महत्व बताया था। वासुदेव द्वादशी का व्रत देवशयनी एकादशी के अगले दिन मनाया जाता है। इस साल यह सोमवार को पड़ रहा है, जो इसे और भी सिद्धिदायक बनाता है। इस दिन सूर्योदय सुबह 5:29 बजे और सूर्यास्त शाम 7:23 बजे होगा। राहुकाल सुबह 7:14 से 8:58 तक रहेगा, इस दौरान पूजा से बचना चाहिए। अनुराधा नक्षत्र और वृश्चिक राशि में चंद्रमा का संचार इस दिन को और शुभ बनाता है।
⚛️ वासुदेव द्वादशी पर शुभ योग
वासुदेव द्वादशी के दिन कई शुभ योग बन रहे हैं, जिससे इस दिन का महत्व और भी बढ़ गया है. वासुदेव द्वादशी के दिन सर्वार्थ सिद्धि नामक शुभ योग रहेगा, जो सुबह 05:31 से शुरू होकर अगले दिन यानी 8 जुलाई तक रहेगा. साथ ही इस दिन शुभ योग, शुक्ल योग और गुरु आदित्य योग भी बना रहेगा. इन शुभ योग में वासुदेव रूप में श्रीकृष्ण की पूजा करने से मनुष्य को सांसारिक क्लेशों से मुक्ति, सुख-समृद्धि, और मोक्ष की प्राप्ति होती है.
📖 वासुदेव द्वादशी व्रत विधि
▫️ वासुदेव द्वादशी का व्रत अत्यंत श्रद्धा और भक्ति के साथ किया जाना चाहिए। यहाँ व्रत की पूरी विधि विस्तार से बताई गई है:
▫️ द्वादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद, हाथ में जल, फूल और अक्षत लेकर व्रत का संकल्प करें। संकल्प लेते समय कहें, “हे भगवान वासुदेव और माता देवकी, मैं आज आपकी प्रसन्नता और संतान प्राप्ति के लिए यह व्रत कर रहा/रही हूँ। मेरा यह व्रत निर्विघ्न संपन्न हो।”
▫️ घर के मंदिर या किसी साफ-सुथरी जगह पर भगवान वासुदेव और माता देवकी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। यदि प्रतिमा उपलब्ध न हो तो भगवान कृष्ण और देवकी की बाल स्वरूप की तस्वीर भी रखी जा सकती है।
▫️ एक तांबे या पीतल के कलश में जल भरकर रखें। कलश के मुख पर आम के पत्ते लगाकर उस पर नारियल रखें। कलश के नीचे थोड़ा चावल या जौ रखें।
▫️ पूजा आरंभ – सबसे पहले दीपक प्रज्वलित करें। भगवान वासुदेव और माता देवकी को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल का मिश्रण) से स्नान कराएं। इसके बाद, उन्हें शुद्ध जल से स्नान कराएं। उन्हें नए वस्त्र या मौली (कलावा) अर्पित करें। चंदन का तिलक लगाएं। पुष्प, माला, तुलसी दल और दूर्वा अर्पित करें। धूप और दीप दिखाएं। नैवेद्य में फल, मिठाई (विशेषकर माखन-मिश्री या पंजीरी) और पंचामृत अर्पित करें। वासुदेव और देवकी माता से जुड़े भजन या मंत्रों का जाप करें। “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
▫️ वासुदेव द्वादशी की व्रत कथा का श्रद्धापूर्वक पाठ करें या सुनें। यह कथा भगवान कृष्ण के जन्म और उनके माता-पिता के संघर्ष पर आधारित होती है।
▫️ पूजा के अंत में भगवान वासुदेव और माता देवकी की आरती करें। आरती के बाद प्रसाद सभी में वितरित करें और स्वयं भी ग्रहण करें।
▫️ दिन भर फलाहार पर रहें या अपनी शारीरिक क्षमतानुसार निर्जल व्रत करें। कुछ लोग इस दिन रात में जागरण कर भगवान का भजन-कीर्तन करते हैं।
▫️ द्वादशी तिथि समाप्त होने पर, त्रयोदशी तिथि को प्रातः काल स्नान करके ब्राह्मणों या गरीबों को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें। इसके बाद ही स्वयं भोजन ग्रहण करके व्रत का पारण करें।
💁🏻♀️ वासुदेव द्वादशी व्रत के नियम
👉🏼 व्रत के दौरान कुछ विशेष नियमों का पालन करना अत्यंत आवश्यक है:
👉🏼 इस दिन पूर्ण सात्विक भोजन करें। लहसुन, प्याज, मांस, मदिरा आदि का सेवन बिल्कुल न करें।
👉🏼 व्रत के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करें।
👉🏼 किसी से भी कटु वचन न बोलें और मन को शांत रखें।
👉🏼 व्रत के दौरान शारीरिक और मानसिक स्वच्छता बनाए रखें। दिन में सोने से बचें।
👉🏼 मन में क्रोध, लोभ या ईर्ष्या जैसे नकारात्मक विचारों को न आने दें।
👉🏼 यदि आप पूर्ण व्रत कर रहे हैं, तो अन्न का त्याग करें।
🗣️ कथा-_
एक कथा के अनुसार बहुत समय पहले चुनार नाम का एक देश था. इस देश के राजा का नाम पौंड्रक था. पौंड्रक के पिता का नाम वासुदेव था इसलिए पौंड्रक खुद को वासुदेव कहा करता था. पौंड्रक पांचाल नरेश की राजकुमारी द्रौपदी के स्वयंवर में भी मौजूद था. पौंड्रक मूर्ख अज्ञानी था. पौंड्रक को उसके मूर्ख और चापलूस मित्रों ने कहा कि भगवान कृष्ण विष्णु के अवतार नहीं बल्कि पौंड्रक भगवान विष्णु का अवतार है. अपने मूर्ख दोस्तों की बातों में आकर राजा पौंड्रक नकली चक्र, शंख तलवार और पीत वस्त्र धारण करके अपने आप को कृष्ण समझने लगा.
एक दिन राजा पौंड्रक ने भगवान कृष्ण को यह संदेश भी भेजा की उसने धरती के लोगों का उद्धार करने के लिए अवतार धारण किया है. इसलिए तुम इन सभी चिन्हों को छोड़ दो नहीं तो मेरे साथ ही युद्ध करो. काफी समय तक भगवान कृष्ण ने मूर्ख राजा की बात पर ध्यान नहीं दिया, पर जब राजा पौंड्रक की बातें हद से बाहर हो गई तब उन्होंने उत्तर भिजवाया कि मैं तेरा पूर्ण विनाश करके तेरे घमंड का बहुत जल्द नाश करूंगा. भगवान श्री कृष्ण की बात सुनने के बाद राजा पौंड्रक श्री कृष्ण के साथ युद्ध की तैयारी करने लगा. अपने मित्र काशीराज की मदद पाने के लिए काशीनगर गया.
भगवान कृष्ण ने पूरे सैन्य बल के साथ काशी देश पर हमला किया. भगवान कृष्ण के आक्रमण करने पर राजा पौंड्रक और काशीराज अपनी अपनी सेना लेकर नगर की सीमा पर युद्ध करने आ गए. युद्ध के समय राजा पौंड्रक ने शंख, चक्र, गदा, धनुष, रेशमी पितांबर आदि धारण किया था और गरुड़ पर विराजमान था. उसने बहुत ही नाटकीय तरीके से उसने युद्ध भूमि में प्रवेश किया. राजा पौंड्रक के इस अवतार को देखकर भगवान कृष्ण को बहुत ही हंसी आई. इसके बाद भगवान कृष्ण ने पौंड्रक का वध किया और वापस द्वारिका लौट गए. युद्ध के पश्चात बदले की भावना से पौंड्रक के पुत्र ने भगवान कृष्ण का वध करने के लिए मारण पुरश्चरण यज्ञ किया, पर भगवन कृष्ण को मारने के लिए द्वारिका की तरफ गई वह आग की लपट लौटकर काशी आ गई और सुदर्शन की मृत्यु की वजह बनी. उसने काशी नरेश के पुत्र सुदर्शन का ही भस्म कर दिया।


