23 जुलाई 2025 में सावन शिवरात्रि कब है? जानें तारीख, महत्व, शिव पूजन मुहू्र्त

Astologar Gopi Ram : आचार्य श्री गोपी राम (ज्योतिषाचार्य) जिला हिसार हरियाणा मो. 9812224501
“ॐ नम: शिवाय
🔱 23 जुलाई 2025 में सावन शिवरात्रि कब है? जानें तारीख, महत्व, शिव पूजन मुहू्र्त………_
⭕ HIGHLIGHTS
◼️ सावन का महीना देवों के देव महादेव को बेहद प्रिय है।
◼️ इस महीने में रोजाना भगवान शिव की पूजा की जाती है।
◼️ सावन सोमवार पर शिवजी का जलाभिषेक किया जाता है।
⛈️ सावन माह बेहद शुभ माह में गिना जाता है, मान्यता है कि यह पूरा माह भगवान शिव के प्रति समर्पित है। इस माह में ही शिवरात्रि भी आती है,जो शिवभक्तों के लिए बेहद खास होती है क्योंकि कावड़िएं शिवजी को हरिद्वार से लाए गंगाजल से इसी दिन अभिषेक कराते हैं। इस बार सावन में शिवरात्रि के दिन भद्रा लग रही है। ऐसे में शिव पूजा के लिए इस दिन आइए जानते हैं आचार्य श्री गोपी राम से कि कितना समय है….
🤷🏻♀️ कब है शिवरात्रि?
पंचांग के मुताबिक, सावन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि का आरंभ 23 जुलाई की प्रात: 04.39 बजे से होगा, जो दूसरे दिन 24 जुलाई की देर रात 02.28 बजे समाप्त होगा।
👉🏼 कब लगेगी भद्रा?
पंचांग के मुताबिक, शिवरात्रि पर भद्रा का समय प्रातः 5 बजकर 37 मिनट से दोपहर 3 बजकर 31 मिनट तक रहेगा। सावन में चंद्रमा जब मिथुन राशि में प्रवेश करेंगे तो स्वर्ग लोक में भद्रा वास करेंगी और जब कर्क राशि में होती है तो पृथ्वी लोक में भद्रा लगती है। 23 जुलाई को सुबह 11 बजे तक मिथुन राशि में रहेंगे, ऐसे में तबतक स्वर्ग लोक में भद्रा लगी रहेगी और फिर 11.00 बजे के बाद चंद्रमा मिथुन राशि से कर्क राशि में जाएंगे तो पृथ्वी लोक की भद्रा लग जाएगी।
स्वर्गे भद्रा शुभं कुर्यात पाताले च धनागम।
मृत्युलोक स्थिता भद्रा सर्व कार्य विनाशनी ।।
➡️ संस्कृत ग्रंथ पियूष धारा के अनुसार, यानी जब भद्रा का वास स्वर्ग लोक या पाताल लोक में होता है तब वह पृथ्वी लोक पर शुभ फल देती है।
⏱️ कितने बजे तक की जा सकती है पूजा?
ऐसे में 23 जुलाई को शिवलिंग पर जलाभिषेक या शिव पूजा के लिए 11.00 बजे तक समय है क्योंकि भद्रा स्वर्ग लोक हैं तो वह पृथ्वी लोक पर बुरा प्रभाव नहीं डालती हैं। इसके अलावा, अगर आप ब्रह्म मुहूर्त यानी प्रातः 4 बजकर 15 मिनट से प्रातः 4 बजकर 56 मिनट तक शिव पूजा करना चाहे हैं तो कर सकते हैं। इसके साथ ही, दोपहर 3.31 बजे के बाद आप शिवपूजा कर सकते हैं।
📖 अन्य शुभ मूहूर्त
👉🏼 निशिता काल पूजा- रात 12.07 बजे से रात 12.48 बजे तक
👉🏼 रात्रि प्रथम प्रहर पूजा- शाम 07.17 बजे से रात 09.53 बजे तक
👉🏼 रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा- रात 9.53 बजे से रात 12.28 बजे तक
👉🏼 रात्रि तृतीय प्रहर पूजा- रात 12.28 बजे से 24 जुलाई प्रातः 03.03 बजे तक
👉🏼 रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा- रात 03.03 बजे से 24 जुलाई प्रातः 05.38 बजे तक
⚛️ हर्षण योग
ज्योतिषियों की मानें तो सावन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर दुर्लभ हर्षण और भद्रावास का निर्माण हो रहा है। हर्षण योग का निर्माण दोपहर 12 बजकर 35 मिनट से होगा। भद्रावास योग दोपहर 03 बजकर 31 मिनट तक है। इस दौरान भद्रा स्वर्ग में रहेंगी। इन योग में भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करने से साधक को दोगुना फल मिलेगा।
🕉️ *महाशिवरात्रि पूजा विधि
▪️ महाशिवरात्रि के अवसर पर अपने आराध्य देव को प्रसन्न करने हेतु भगवान शिव की पूजा इस प्रकार करें:
▪️ मिट्टी के बने लोटे द्वारा पानी या दूध से शिवलिंग का अभिषेक करें। इसके पश्चात शिवलिंग पर बेलपत्र, आक-धतूरे के फूल, चावल आदि अर्पित करने चाहिए। यदि घर के निकट कोई शिव मंदिर नहीं है, तो घर में ही मिट्टी का शिवलिंग बनाकर पूजन करना चाहिए।
▪️ इस दिन शिवपुराण का पाठ तथा महामृत्युंजय मंत्र या शिव के पंचाक्षर मंत्र “ॐ नमः शिवाय” का जप करना चाहिए। महाशिवरात्रि की रात जागरण करने की भी परंपरा है।
▪️ शास्त्रों के अनुसार, महाशिवरात्रि की पूजा निशीथ काल में करना सर्वश्रेष्ठ होता है। इस दिन शिव भक्त चारों प्रहरों में से किसी भी पहर में अपनी सुविधानुसार पूजा कर सकते हैं।
▪️ महाशिवरात्रि की रात्रि समस्त शिव मंदिर ’ओम नमः शिवाय’ के उच्चारण से गूंज उठते हैं तथा सभी भगवान शिव के सम्मान में भक्ति गीत गाते हैं।
🗣️ *महाशिवरात्रि कथा*
महाशिवरात्रि से जुड़ीं अनेक कथाएँ प्रचलित हैं इन्ही में से एक कथा के बारे में हम जानेंगे। पौराणिक मान्यता है कि माता पार्वती ने शिव जी को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए घनघोर तपस्या की थी। इस कथा के परिणामस्वरूप फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। उस समय से ही महाशिवरात्रि को अत्यंत पवित्र माना जाता है।
इसके अतिरिक्त, गरुड़ पुराण में महाशिवरात्रि से जुड़ीं एक अन्य कथा का वर्णन मिलता है। ऐसी मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन एक निषादराज अपने कुत्ते के साथ शिकार पर गया किन्तु उसे कोई शिकार नहीं मिला। थकान एवं भूख-प्यास से परेशान होकर एक तालाब के किनारे गया, जहाँ बिल्व वृक्ष के नीचे शिवलिंग स्थापित था। अपने शरीर को आराम देने के लिए निषादराज ने कुछ बिल्व-पत्र तोड़े, जो शिवलिंग पर भी गिर गए। अपने पैरों को साफ़ करने के लिए उसने उन पर तालाब का जल छिड़का और जल की कुछ बून्दें शिवलिंग पर भी गिर गई। ऐसा करते समय उसका एक तीर नीचे जा गिरा और जिसे उठाने के लिए वह शिवलिंग के सामने झुका। इस तरह अनजाने में ही उसने शिवरात्रि पर शिव पूजा की प्रक्रिया पूरी कर ली। मृत्यु के उपरांत जब यमदूत उसे लेने के लिए आए, तब शिव जी के गणों ने उसकी रक्षा की और उन्हें भगा दिया।
इस प्रकार अज्ञानतावश महाशिवरात्रि पर किये गए शिव जी के पूजन से शुभ फल की प्राप्ति हुई, अपनी सोच और श्रद्धभाव द्वारा किये गए देवाधिदेव महादेव का पूजन कितना अधिक फलदायी सिद्ध होगा।


