धार्मिक

हमारा मन यदि वश में है तो किसी भी प्रकार का लोभ या मोह हमें पथ भ्रष्ट नहीं कर सकता : शास्त्री

सुल्तानगंज । हनुमान बाग मंदिर में चल रही श्री शिव महापुराण कथा के द्वितीय दिवस में पंडित कमलेश कृष्ण शास्त्री ने कहा कि भारतीय संस्कृति ने सम्पूर्ण विश्व को लोक-कल्याण के अनेक सूत्र दिए हैं, जिनमें योग, ध्यान और आयुर्वेद आदि प्रमुख हैं। जब मन विषयों से विलग होता तब ध्यान घटित होता है। अर्थात्, चेतना ध्येय के अतिरिक्त अन्य किसी विषय वस्तु से संलग्न न हो और मन निर्विचार होने के साथ चैतन्य अवस्था में रहे, यही ध्यान की अवस्था है। सफलताओं की प्राप्ति के लिये ध्यानाभ्यासी बनें। सफलता प्राप्ति के लिए जीवन में आत्म-संयम का होना अनिवार्य है। आत्म-संयम अर्थात् मन एवं इन्द्रियों को वश में रखना। हमारा मन यदि वश में है तो किसी भी प्रकार का लोभ या मोह हमें पथ भ्रष्ट नहीं कर सकता। मनुष्य की पहचान उसके मन से ही होती है और मन की गति बहुत तीव्र होती है। जो व्यक्ति अपने मन पर नियंत्रण रखना जानता है, वह आत्म-संयम के साथ सुख पूर्वक जीवन व्यतीत करता है। लेकिन, जो अनियंत्रित गति से दौड़ रहे हैं, मन के साथ कदम मिलाते हुए आगे बढ़ते हैं, उन्हें जीवन में बहुत कष्ट उठाना पड़ता है। उदाहरण के लिए एक छात्र को ही ले लें। परीक्षा की तैयारी करते समय यदि उसका मन इधर-उधर भागेगा तो पढ़ाई में मन नहीं लग पायेगा। ऐसे में वह परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने से वंचित रह जायेगा। परीक्षा भवन में भी बहुत से विद्यार्थी सब कुछ याद होते हुए भी केवल इसलिए मात खा जाते हैं कि प्रश्नपत्र सामने आते ही वे धैर्य खो बैठते हैं और जल्दी-जल्दी प्रश्नपत्र हल करने की घबराहट में या तो आधा अधूरा करके आते हैं या फिर गलत उत्तर लिख कर आ जाते हैं। यदि पढ़ाई करते समय ही उन्हें अपने मन एवं भावनाओं पर नियंत्रण रखने तथा धैर्य के साथ प्रश्नों को समझ कर उनका उत्तर देने की शिक्षा दी जाए तो उनके प्रदर्शन में बहुत सुधार हो सकता है। इस प्रकार आत्म-संयम का दूसरा अर्थ हुआ – धैर्य। जीवन के हर क्षेत्र में धैर्यवान रहने की आवश्यकता होती है। जब मन पूर्ण रूप से स्थिर एवं एकाग्र होता है तभी उसकी शक्ति सकारात्मक कार्यों में व्यय होती है। क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष, लोभ, मोह, स्वार्थ ये सब मन के भटकने के ही कारण हैं। मन की इस भटकन के साथ कोई भी कार्य एकाग्रता से नहीं हो सकता। कथा के आयोजक भगवान दास जी महाराज और सहयोगी समस्त नगर वासी है।

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