मन के विचार पवित्र रखे : कमलेश शास्त्री
सुल्तानगंज । मरखेडा गुलाब में चल रही श्री मद् भागवत महापुराण कथा केचतुर्थ दिवस में पंडित कमलेश कृष्ण शास्त्री ने कहा कि सब सुखों की प्राप्ति के लिए मन को पवित्र रखें। मन की पवित्रता की सर्वत्र चर्चा होती है। जिसका मन पवित्र है, वह सत्यवादी है, वह धर्मात्मा है, वह परोपकारी है, वह दूसरों का सहायक है, उसमें वशीकरण की शक्ति है, इसे व्यक्ति के मन को बुद्धि सदा ही दिव्य चेतना प्रदान करती है। ऐसा मन ज्ञान और कर्म से भरपूर होता है, संकल्प शक्ति का केन्द्र बन जाता है, ऐसा व्यक्ति चिन्तनशील, सुविचारों वाला होता है। जब मन के शुद्ध होने से इतने गुणों की प्राप्ति होती है तो क्यों न हम इन सुखों को पाने के लिए मन को पवित्र रखें। शरीर और मन दोनों को पवित्र और शान्त रखता है। ॐ का उच्चारण। ॐ का निरंतर जाप करने से आंतरिक और बाह्य विकारों का भी निदान होता है। मन शान्त होता है और बहुत-सी शारीरिक-मानसिक व्याधियाँ दूर होती हैं। इसके नियमित जाप से व्यक्ति के प्रभामण्डल में वृद्धि होती है। देवभक्ति में श्रद्धा और विश्वास होने के साथ-साथ पवित्रता का भी महत्व है। यह मात्र धार्मिक नियम नहीं, बल्कि इसके पीछे यही विज्ञान है कि पवित्रता, तन और वातावरण में प्रफुल्लता और ऊर्जा लाने के साथ ही मन और विचारों को भी भटकाव से बचाती है। ॐ के बिना किसी घर की पूजा पूर्ण नहीं होती। कहते हैं कि बिना ॐ के सृष्टि की कल्पना भी नहीं हो सकती है। माना जाता है कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड से हमेशा ॐ की ध्वनि निकलती है। ॐ सिर्फ एक पवित्र ध्वनि ही नहीं, बल्कि अनन्त शक्ति का प्रतीक है। ॐ शब्द तीन अक्षरों से मिलकर बना है – अ, उ और म। अ का अर्थ होता है – उत्पन्न होना; उ का अर्थ होता है – उठना यानी विकास और म का तात्पर्य होता है – मौन हो जाना यानी कि ब्रह्मलीन हो जाना। वैज्ञानिकों ने ॐ के उच्चारण पर रिसर्च किया और निरीक्षण किया कि प्रतिदिन ॐ के उच्चारण से मष्तिष्क के साथ-साथ पूरे शरीर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इससे शरीर की मृत हुई कोशिकाएँ दोबारा जन्म लेतीं हैं। कथा के विश्राम पर कृष्ण जन्म बड़ी धूम धाम से मनाया गया।