भागवत कथा अमृत है जो मनुष्य को मोक्ष प्रदान करने वाला है : पंडित रेवाशंकर शास्त्री
धर्म पर चलने वाला व्यक्ति परेशान हो सकता है लेकिन पराजित नहीं धर्म पर चलने वाले व्यक्ति को भगवान हमेशा पग पग पर हाथ का सहारा देते चलती है
सिलवानी। ग्राम मवई में श्रीमद् भागवत महापुराण कथा का आयोजन स्वर्गीय राजकुमारी दुबे की पुण्यस्मृति में पंडित राधेलाल दुबे के द्वारा भागवत कथा का आयोजन किया जा रहा है। कथा के दौरान व्यासपीठ से पंडित रेवाशंकर शास्त्री ने कथा के द्वितीय दिवस के अवसर पर श्रद्धालु जनों को संबोधित करते हुए श्रीमद् भागवत महापुराण की महिमा के वर्णन में कहा कि श्रीमद् भागवत महापुराण कथा वह अमृत है जिसके द्वारा आत्म कल्याण होता है। जीव अनेक योनियों में अनंत जन्मों से भटक रहा है। जन्म मरण के चक्र से मुक्ति का माध्यम श्रीमद् भागवत महापुराण में प्राप्त हो जाता है। संसार में जितने भी जीव हैं वह अज्ञानता के कारण स्वयं को शरीर मन बैठे हैं लेकिन वस्तुतः वह शरीर नहीं है वह शुद्ध बुद्ध चैतन्य परमात्मा का स्वरूप ही हैं। लेकिन माया के आवरण के कारण जीव भ्रमित है। स्वयं को शरीर मान बैठा है। यह भौतिक जगत के फल स्वरुप जीव को इस संसार में बांध रखा है जबकि संसार नश्वर है मिथ्या है। इसी प्रकार मनुष्य का शरीर भी नाश बान है लेकिन जो आत्म तत्व है वह शुद्ध रूप से परमात्मा का ही अंश है । इसे जानने का ज्ञान श्री मद्भागवत के माध्यम से हमको हो सकता है ।
उन्होने बताया कि समस्त योनियों में मानव की योनि सर्वश्रेष्ठ है और इसी में हमें आभास होता है कि हम अन्य जीवो से अलग हैं। बौद्धिकता और संवेदनशीलता से संबंधित हमारा व्यक्तित्व हमें अन्य जीवो से अलग बनाता है । प्रकृति ने बड़े सृजन के साथ मनुष्य को समस्त देह धारियों से अलग किया है। इसी तारतम्य में हमारा दायित्व बहुत बढ़ जाता है कि हम बड़े पुण्यों से प्राप्त इस शरीर को प्राप्त करके अपने परलोक सुधारने का कार्य जीवन काल में कर लें।
कथा वाचक पंडित रेवाशंकर शास्त्री ने भगवान श्री कृष्ण के द्वारा कंस वध की कथा सुनाते हुए कहा कि जब भी कोई दुराचारी अत्याचारी सज्जनों के ऊपर अत्याचार करेगा तो उसका अंत निकट भविष्य में अनिवार्य रूप से होगा । देर तो होगी लेकिन अंधेर कभी नहीं होगा। भगवान श्री कृष्ण ने समस्त नर नारियों के कष्ट को दूर किया एवं उन्होंने अपनी लीलाओं के माध्यम से आध्यात्मिकता का संदेश व्यक्तियों को दिया मनुष्य को सदैव परमार्थ के पथ पर चलते हुए अपनी जीविका को चलाते हुए निष्कपट भाव से भगवान का भजन पूजन के साथ गौ माता की सेवा करना चाहिए किसी मनुष्य का इस मृत्युलोक से उद्धार हो सके।