मध्य प्रदेश

स्कूलों के बार-बार बंद होने से छात्रों की सीखने की क्षमता प्रभावित कमजोर हो रही बुनियाद, पढ़ाई प्रभावित

सिलवानी। क्या फिर से लॉकडाउन लगेगा, स्कूल फिर से बंद होंगे, बच्चों की पढ़ाई हो जाएगी ठप, ऐसे कई सवाल इन दिनों बच्चों के माता-पिता के जहन में उठने शुरू हो गए है। पिछले दो वर्षों में कोरोना महामारी के चलते बार-बार स्कूल बंद होने से छात्रों के पढने और सीखने की क्षमता प्रभावित हो रही है। शिक्षकों के अनुसार नियमित कक्षाएं न होने से छात्र ठीक ढंग से नहीं पढ़ पा रहे हैं और न ही सवालों का जवाब दे पा रहे हैं। ऑनलाइन कक्षा को लेकर छात्र ज्यादा सक्रिय नहीं है। कुछ शिक्षकों ने बताया कि कोरोना के चलते बच्चों की पढ़ाई का नुऽसान हो रहा है। इससे बच्चों की बुनियाद कमजोर हो रही है। वास्तविक पढ़ाई आमने-सामने कक्षा में होती है। ऑनलाइन पढ़ाई में 10-15 फीसदी से ज्यादा छात्र सक्रिय नहीं होते हैं वहीं उनकी सीखने की ललक भी कम हो रही है। छात्र मानसिक रूप से तनाव का शिकार हो रहे है साथ ही घरेलू जीवन पर भी इसका दुष्प्रभाव पड़ रहा है। उन्होंने बताया कि बच्चों की कक्षा के हिसाब से फर्क पड़ता है। पिछले वर्ष लॉकडाउन से पहले जो छात्र दूसरी कक्षा में पढ़ता था वह ऑनलाइन पढ़ाई करते हुए चैथी कक्षा में पहुंच गया है। लेकिन उसका बुनियादी स्तर दूसरी कक्षा वाला ही बना हुआ है। पढ़ने से लेकर सवालों को हल करने में छात्रों के बीच परेशानी देखने को मिल रही है। ऑनलाइन कक्षा के लिए काफी छात्रों के पास संसाधनों का अभाव है तो कुछ ऑनलाइन कक्षा में सवाल पूछने पर नेटवर्क न आने का बहाना बताने लगते है। कुछ पैरेंट्स ने बताया कि स्कूलों के बार-बार बंद होने से छात्रों की पढ़ाई बुरी तरह से प्रभावित हो रही है। पढ़ाई के अलावा बच्चों में चिड़चिड़ापन और अकेलापन जैसी समस्या देखने को मिल रहा है। ऑनलाइन कक्षा के दौरान अगर शिक्षक कोई सवाल पूछ ले तो उसका ठीक ढंग से छात्र जवाब नहीं दे पा रहे हैं। ऐसी परिस्थिति में छात्रों की स्थायी पढ़ाई के लिए उचित कदम उठाने जरूरी है, जिससे पढ़ाई को लेकर निरंतरता बनी रहे। जानकारों की माने तो कोविड महामारी के चलते सभी कक्षा के छात्रों को सीखने में हानि हुई है। यह केवल प्राथमिक कक्षा के छात्रों की बात नहीं है बल्कि बड़ी कक्षा के छात्रों में भी ऐसा देखने को मिला है। 14-18 वर्ष की उम्र वाले 80 फीसदी छात्रों का सीखने का स्तर कम रिपोर्ट हुआ है। जबकि 92 फीसदी छात्रों ने औसतन एक भाषाई क्षमता को खो दिया है।

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