मिट्टी में जीवन का उजियारा: दीपावली की तैयारी में जुटे कुम्हार, चाक पर फिर लौटी रफ्तार

सिलवानी। दीपावली का पर्व नज़दीक आते ही एक बार फिर कुम्हार समाज की चाक ने रफ्तार पकड़ ली है। मिट्टी में जान फूंक कर दीपक और मूर्तियों का रूप देने में जुटे शिल्पकार इस बार भी परंपरा के साथ-साथ अपने परिवार की आजीविका को रोशन करने में लगे हैं। यह सिर्फ एक त्यौहार की तैयारी नहीं, बल्कि पीढ़ियों से चली आ रही सांस्कृतिक धरोहर को संजोने का संकल्प है।
मिट्टी के दीयों, मूर्तियों, कलश और अन्य पूजन सामग्री का निर्माण तेजी से हो रहा है। चाक पर घूमती मिट्टी से न सिर्फ दीये बन रहे हैं, बल्कि उम्मीदें भी आकार ले रही हैं।
नहीं है आसान मिट्टी को आकार देना
कुम्हार जयकुमार प्रजापति बताते हैं मिट्टी को दीये के रूप में ढालना आसान नहीं है। सबसे पहले मिट्टी को छाना जाता है, फिर उसे गलाकर कंकड़ हटाए जाते हैं। इसके बाद चाक पर उसे सही आकार देना पड़ता है। यह मेहनत, धैर्य और कौशल का काम है।
जयकुमार का परिवार कई पीढ़ियों से यह काम करता आ रहा है। वे बताते हैं कि शुद्ध पीली मिट्टी से बनाए गए दीयों की मांग आज भी बनी हुई है। उनका मानना है कि यह परंपरा सिर्फ व्यवसाय नहीं, बल्कि संस्कृति की सेवा है।
परंपरा से जीविका तक का सफर
राजेश प्रजापति बताते हैं कि दीपावली के अवसर पर पूरा परिवार मिलकर काम करता है। लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियाँ, कलश, हवन कुंडी और अन्य पूजन सामग्री तैयार की जाती है। दीपावली तक हम 40 से 50 हजार रुपये तक की बिक्री कर लेते हैं। उन्होंने कहा बाजार में भले ही इलेक्ट्रॉनिक दीयों और प्लास्टिक की मूर्तियों का प्रचलन बढ़ा हो, लेकिन मिट्टी से बने पारंपरिक दीयों की चमक आज भी कायम है।
बाजारों में लौटेगी मिट्टी की खुशबू
दीपावली के नजदीक आते ही शहर के बाजारों और गांवों में मिट्टी से बनी वस्तुओं की दुकानें सजने लगी हैं। एक-दो दिनों में इनकी रौनक और बढ़ेगी। ग्रामीण क्षेत्रों में भी कुम्हार घर-घर जाकर अपनी वस्तुएं बेच रहे हैं। यह त्योहार उनके लिए सिर्फ उजियारा लाने का नहीं, बल्कि पूरे वर्ष के जीवन यापन का माध्यम भी है।
संघर्ष के बावजूद हौसले बुलंद
बढ़ती महंगाई और आधुनिकता के इस दौर में इन कारीगरों की आमदनी भले ही प्रभावित हुई हो, लेकिन उनका हौसला कम नहीं हुआ है। मिट्टी को रूप देकर वे न सिर्फ अपनी परंपरा को जीवित रखे हुए हैं, बल्कि दीपावली की असली आत्मा मिट्टी की खुशबू, सादगी और परिश्रम को भी जीवंत बनाए हुए हैं।



