उच्च पदों पर बैठे व्यक्ति के विचार संकुचित नहीं होना चाहिए…

संकलन : हरीश मिश्र, रायसेन।
मैं नेहरू से मिला… 1956 पुस्तक को पढ़ने के बाद मैं नेहरू जी की हिंदू समुदाय के प्रति उनकी सोच, टिप्पणियों और नीतियों से असहमत हूं…
देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय पं जवाहर लाल नेहरू ने 31 दिसम्बर 1955 से 9 जनवरी 1956 तक विदेशी पत्रकार तिबौर मॉड से राजनैतिक, आर्थिक, ऐतिहासिक, विदेश नीति तथा सामाजिक विषयों पर चर्चा की….इस चर्चा पर एक पुस्तक प्रकाशित हुई ” मैं नेहरू से मिला ” ।
मॉड ने पूछा ” क्या पश्चिमी उदारवाद के तरीक़ो के असर में आने से पहले ही आपके मन में हिंदू समाज के खिलाफ बगावत थी ।”
नेहरू- हां
इस हद तक कि मेरे पिता खुद उसके खिलाफ बगावत कर रहे थे और मैं उनकी इस बात को मानता था और समझता था कि यह ठीक बात भी है।
नेहरू जी की बगावत का परिणाम है कि हिंदुस्तान आजादी के बाद धर्म के आधार पर दो मुल्कों में बंटा । भारत ने धर्मनिरपेक्षता को स्वीकार किया और पाकिस्तान ने धर्म आधारित सत्ता स्थापित की। लेकिन भारत को प्रथम प्रधानमंत्री ऐसे मिले जिनके मन में हिंदू समुदाय के प्रति बगावत थी। परिणाम वह देश की हिंदू आवाम के साथ न्याय नहीं कर पाए।
उसी का परिणाम है कि हिंदू समुदाय की आज़ादी के बाद की पीढ़ी गांधी खानदान और कांग्रेस को स्वीकार नहीं कर पा रही और एक परिवार और एक दल के प्रति बगावत कर रहा है।
उच्च पदों पर बैठे व्यक्ति के विचार संकुचित नहीं होना चाहिए।
