धार्मिक

Today Panchang आज का पंचांग शुक्रवार, 23 मई 2025

आचार्य श्री गोपी राम (ज्योतिषाचार्य) जिला हिसार हरियाणा मो. 9812224501
✦••• जय श्री हरि •••✦
🧾 आज का पंचाग 🧾
शुक्रवार 23 मई 2025
आप सभी सनातनियों को अपरा एकादशी व्रत की हार्दिक शुभकामनाएं एवं आप पर ईश्वर का सदैव आशीर्वाद बना रहे ।
ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ॥
🌌 दिन (वार) – शुक्रवार के दिन दक्षिणावर्ती शंख से भगवान विष्णु पर जल चढ़ाकर उन्हें पीले चन्दन अथवा केसर का तिलक करें। इस उपाय में मां लक्ष्मी जल्दी प्रसन्न हो जाती हैं।
शुक्रवार के दिन नियम पूर्वक धन लाभ के लिए लक्ष्मी माँ को अत्यंत प्रिय “श्री सूक्त”, “महालक्ष्मी अष्टकम” एवं समस्त संकटो को दूर करने के लिए “माँ दुर्गा के 32 चमत्कारी नमो का पाठ” अवश्य ही करें ।
शुक्रवार के दिन माँ लक्ष्मी को हलवे या खीर का भोग लगाना चाहिए ।
शुक्रवार के दिन शुक्र ग्रह की आराधना करने से जीवन में समस्त सुख, ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है, दाम्पत्य जीवन सुखमय होता है बड़ा भवन, विदेश यात्रा के योग बनते है।
🔮 शुभ हिन्दू नववर्ष 2025 विक्रम संवत : 2082 कालयक्त विक्रम : 1947 नल
🌐 कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082,
✡️ शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), चैत्र
☮️ गुजराती सम्वत : 2081 नल
☸️ काली सम्वत् 5126
🕉️ संवत्सर (उत्तर) क्रोधी
☣️ आयन – उत्तरायण
☂️ ऋतु – सौर ग्रीष्म ऋतु
☀️ मास – ज्यैष्ठ मास
🌒 पक्ष – कृष्ण पक्ष
📆 तिथि – शुक्रवार ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष एकादशी तिथि 10:30 PM तक उपरांत द्वादशी
📝 तिथि स्वामी – एकादशी के देवता हैं विश्वेदेवगणों और विष्णु। इस तिथि को विश्वेदेवों पूजा करने से संतान, धन-धान्य और भूमि आदि की प्राप्ति होती है।
💫 नक्षत्र – नक्षत्र उत्तरभाद्रपदा 04:02 PM तक उपरांत रेवती
🪐 नक्षत्र स्वामी – उत्तरभाद्रपदा नक्षत्र का स्वामी शनि है। उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के देवता अहिर्बुध्न्य हैं।
⚜️ योग – प्रीति योग 06:36 PM तक, उसके बाद आयुष्मान योग
प्रथम करण : बव – 11:54 ए एम तक
द्वितीय करण : बालव – 10:29 पी एम तक कौलव
🔥 गुलिक काल : – शुक्रवार को शुभ गुलिक प्रात: 7:30 से 9:00 तक ।
⚜️ दिशाशूल – शुक्रवार को पश्चिम दिशा का दिकशूल होता है।यात्रा, कार्यों में सफलता के लिए घर से दही में चीनी या मिश्री डालकर उसे खाकर जाएँ ।
🤖 राहुकाल -दिन – 11:13 से 12:35 तक राहु काल में कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए |
🌞 सूर्योदयः- प्रातः 05:19:00
🌅 सूर्यास्तः- सायं 06:41:00
👸🏻 ब्रह्म मुहूर्त : 04:04 ए एम से 04:45 ए एम
🌇 प्रातः सन्ध्या : 04:25 ए एम से 05:26 ए एम
🌟 अभिजित मुहूर्त : 11:51 ए एम से 12:45 पी एम
✡️ विजय मुहूर्त : 02:35 पी एम से 03:30 पी एम
🐃 गोधूलि मुहूर्त : 07:08 पी एम से 07:29 पी एम
🏙️ सायाह्न सन्ध्या : 07:10 पी एम से 08:11 पी एम
💧 अमृत काल : 11:35 ए एम से 01:04 पी एम
🗣️ निशिता मुहूर्त : 11:57 पी एम से 12:38 ए एम, मई 24
सर्वार्थ सिद्धि योग : 04:02 पी एम से 05:26 ए एम, मई 24
💦 अमृत सिद्धि योग : 04:02 पी एम से 05:26 ए एम, मई 24
🚓 यात्रा शकुन-शुक्रवार को मीठा दही खाकर यात्रा पर निकलें।
👉🏼 आज का मंत्र-ॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम:।
🤷🏻‍♀️ आज का उपाय-किसी विप्र को चांदी भेंट करें।
🌳 *वनस्पति तंत्र उपाय-गूलर के वृक्ष में जल चढ़ाएं। ⚛️ पर्व एवं त्यौहार : अपरा एकादशी व्रत (स्मार्त/वैष्णव)/मूल प्रारंभ/सर्वार्थसिद्धि योग/ जलक्रीड़ा एकादशी (उड़िसा/ भद्रकाली एकादशी (पंजाब)/ पंचक जारी/कूर्म जयंती/ भगवान विष्णु की जयंती/ प्राण नाथ थापर जयन्ती, गायत्री देवी जन्म दिवस, रणजीत गुहा जन्म दिवस, के. राघवेंद्र राव जन्म दिवस, विनोद राय जन्म दिवस, कोमटिरेड्डी वेंकट रेड्डी जन्म दिवस, राखलदास वंद्योपाध्याय स्मृति दिवस, भार्गवी प्रभंजन राव पुण्य तिथि, माधव कृष्णजी मंत्री पुण्य तिथि, अंतरराष्ट्रीय वर्ल्ड टर्टल डे दिवस, विश्व जैव विविधता दिवस, प्रसूति नालव्रण समाप्त करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस, अंतर्राष्ट्रीय तिब्बत मुक्ति दिवस, विश्व कछुआ दिवस (World Turtle Day) ✍🏼 तिथि विशेष – एकादशी तिथि को चावल एवं दाल नहीं खाना चाहिये तथा द्वादशी को मसूर नहीं खाना चाहिये। यह इस तिथि में त्याज्य बताया गया है। एकादशी को चावल न खाने अथवा रोटी खाने से व्रत का आधा फल सहज ही प्राप्त हो जाता है। एकादशी तिथि एक आनन्द प्रदायिनी और शुभफलदायिनी तिथि मानी जाती है। एकादशी को सूर्योदय से पहले स्नान के जल में आँवला या आँवले का रस डालकर स्नान करना चाहिये। इससे पुण्यों कि वृद्धि, पापों का क्षय एवं भगवान नारायण के कृपा कि प्राप्ति होती है।। 🗺️ *_Vastu tips* 🛟
सनातन धर्म में सुबह के दौरान देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना करना शुभ माना जाता है। इसलिए सुबह स्नान और सूर्य देव को जल अर्पित करने के बाद आराध्य देव की पूजा जरूर करनी चाहिए। साथ ही उन्हें प्रिय चीजों का भोग लगाना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि दिन की शुरुआत देवी-देवता के ध्यान से करना अच्छा माना जाता है। इससे जातक का जीवन खुशहाल होता है और सभी दुख-संकट से छुटकारा मिलता है। इसके अलावा मंदिर या गरीब लोगों में श्रद्धा अनुसार अन्न, वस्त्र और भोजन का दान करना फलदायी साबित होता है।
♻️ जीवनोपयोगी कुंजियां ⚜️
लुम्बिनी के शांत उद्यान में, खिलते साल वृक्षों के नीचे, शाक्य कुल की रानी माया ने एक बच्चे को जन्म दिया। उसका नाम ‘सिद्धार्थ गौतम’ रखा गया। यह साफ़ पूर्णिमा की रात थी, और जैसे ही भविष्य के बुद्ध का जन्म हुआ, पूरे राज्य में उत्सव की लहर दौड़ गई।
लेकिन सिद्धार्थ का जीवन आसान नहीं था। कपिलवस्तु के महल में पले-बढ़े, उन्होंने सभी प्रकार की विलासिता देखी, लेकिन भीतर से वे बेचैन थे। उनके पिता, राजा शुद्धोधन, चाहते थे कि वे एक महान राजा बनें और उन्हें महल की दीवारों के बाहर की कठोर सच्चाइयों से दूर रखा। परंतु, सिद्धार्थ का मन हमेशा सवालों से भरा रहता था।
एक दिन, अपनी जिज्ञासा से प्रेरित होकर, सिद्धार्थ
खाना खाने के कितने समय बाद दवाई की गोली या औषधि खानी चाहिए?
ये सवाल जितना आम है, उतना ही गहरा और ज़रूरी भी है। क्योंकि अगर सही समय पर दवा न ली जाए तो उसका असर या तो कम हो सकता है, या उल्टा असर भी हो सकता है। इसलिए चलिए बात करते हैं इस गंभीर सवाल की पूरी गहराई में, बेहद रोचक, दिलचस्प और पूरी तरह से समझने लायक अंदाज़ में… 🌿📖✨
🌟 चलिए शुरुआत एक सच्चाई से करते हैं:
हर दवा की अपनी एक टाइमिंग होती है, और यह केवल फार्मासिस्ट की चालाकी नहीं है – बल्कि यह हमारे शरीर की जैविक प्रक्रिया, भोजन के पाचन तंत्र, और दवा के अवशोषण पर निर्भर करता है। अगर आप दवा लेने के सही समय को नज़रअंदाज़ कर दें, तो नतीजा हो सकता है:
दवा बेअसर हो जाए 😞
साइड इफ़ेक्ट्स बढ़ जाएँ 😰
पाचन तंत्र बिगड़ जाए 💥

शरीर में ज़रूरी पोषक तत्व अवशोषित न हो पाए🧬
🍛 दवा लेने का समय क्यों ज़रूरी होता है?
जब हम खाना खाते हैं, तो हमारे पेट में गैस्ट्रिक जूस बनते हैं, एंज़ाइम्स सक्रिय होते हैं और पाचन की प्रक्रिया शुरू होती है। अब सवाल यह है कि दवा को इस प्रक्रिया से पहले लेना चाहिए, बाद में या बीच में?
यह इस बात पर निर्भर करता है कि दवा किस प्रकार की है:
कुछ दवाइयाँ खाली पेट लेनी चाहिए 🥴
ताकि वह जल्दी अवशोषित हों और भोजन उसमें बाधा न बने।
कुछ दवाइयाँ खाने के साथ या तुरंत बाद में लेनी चाहिए 🍱
ताकि पेट पर उसका असर कम हो, खासकर जब वह अम्लीय (acidic) होती हैं।
कुछ दवाइयाँ खाने के 30 मिनट से लेकर 1 घंटे बाद लेना ज़रूरी होता है
ताकि पाचन प्रक्रिया कुछ हद तक पूरी हो जाए और दवा अपना असर शुरू करे।
🫘 आरोग्य संजीवनी 🍯
शतावर जड़ को उपयुक्त रूप में कैसे उपयोग करें?
यदि आप इसे कच्चे रूप में लेना चाहते हैं, तो इसे पहले हल्का धोकर, छोटे टुकड़ों में काटकर या कद्दूकस करके सेवन किया जा सकता है, लेकिन यह सभी के लिए आदर्श तरीका नहीं है। अधिकतर, इसे निम्नलिखित तरीकों से लेना अधिक फायदेमंद और प्रभावी होता है
शतावर चूर्ण: सूखी शतावर जड़ को पीसकर तैयार किया गया चूर्ण सबसे प्रभावी और सरल उपाय है। इसे दूध या गर्म पानी के साथ लेने से इसके पोषक तत्व बेहतर तरीके से अवशोषित होते हैं।
शतावर पाउडर और शहद: यदि आपको कच्ची जड़ खाने में कठिनाई होती है, तो इसके पाउडर को शहद के साथ मिलाकर लेना अधिक फायदेमंद होगा।
शतावर दूध: यह सबसे अधिक अनुशंसित तरीका है। शतावर पाउडर को दूध में उबालकर पीने से यह न केवल सुपाच्य बनता है, बल्कि इसके गुण भी दोगुने हो जाते हैं।
शतावर घृत (घी): इसे गाय के घी में पकाकर लेना शारीरिक ताकत और ऊर्जा के लिए बहुत उपयोगी होता है।
📚 गुरु भक्ति योग 🕯️
ग्रह बाधा दूर करने के सबसे सरल उपाय क्या हैं?
तैत्तरीय उपनिषद के अनुसार दान सदैव लज्जा सहित स-विनय देना चाहिए। ग्रह बाधा के रूप में जन्मपत्रिका में दर्शितअपने बुरे कर्म के फल को कम या दूर करने की यही सर्वोत्तम सरल और प्रभावी शास्त्रोक्त विधि है।
ग्रहबाधा दूर करने के सबसे सरस उपाय तो यही है कि शान्ति के लिए निर्धारित किया गया ग्रह:
जिस जीव का
जिस सम्बन्धीजन का
जिस वस्तु का या
जिस सेवा कार्य का प्रतिनिधि हो
★ग्रह की प्रतिनिधि उस वस्तु या सेवा कार्य से उस ग्रह के प्रतिनिधि जीव या सम्बन्धी आदि की या प्राणी मात्र की सेवा करना चाहिए
●विश्व के सभी धर्मों में दान व सेवा कार्य पर जोर दिया गया है।
★इस्लाम धर्म में परोपकार व दान को जकात कहा गया है ।जकात इस्लाम के पाँच कर्तव्यों duties में से एक है। प्रत्येक को अपनी साल भर की आमदनी का कुछ भाग (ढाई प्रतिशत ) जकात पर खर्च करना चाहिए।
★सनातन धर्म में भी आमदनी का एक निश्चय प्रतिशत परोपकार में खर्च करने का निर्देश है जो आय का दश प्रतिशत बताया गया है।
★ईसाई धर्म में भी प्राणी मात्र की सेवा को धर्म का मुख्य अंग माना गया है।
★★ज्योतिष शास्त्र की दृष्टि से देखें तो:
★ज्योतिष के बृहत पाराशरी जैसे प्राचीन और सर्वग्रन्थों में दशा अंतर्दशा फल अध्याय को ही देखिए:
★सर्वर्त्र 1-दान, 2-जप, 3 होम -ये ही निर्देशित किया गया है। ये जप होम भी ग्रह से संकेतित देव देवी का करना होता है। जैसे शनि के लिए शिव अथवा दुर्गा जप, बुध के लिए गुरु के लिए विष्णु मन्त्र आदि जप पाराशरी में निर्देशित है।
★दान व्यापक शब्द है।मन्दिर में ईश्वर के निमित्त धन वस्त्र या वस्तु दान कोई दान नहीं।पर सबसे अधिक चलन इसी का हो गया है इसके पीछे मन्दिर में आस्था और पुरोहित वर्ग का मंदिर में दान पर जोर देना मुख्य है। पर विचारिए कि क्या ईश्वर मन्दिर में ही विराजता है। मूर्ति पूजा का प्रसार होने के पहले वेदों के आखिरी भाग उपनिषदों में ऐसा कोई उल्लेख नहीं कि मन्दिर में ही दान दिया जाए।
ईश्वर सबको देते उसे कैसे दे सकते हैं? उन्हें तो केवल कुछ अर्पण की कर सकते हैं।
दान तो जरूरतमंद को दिया गया ही श्रेष्ठ होता है। अब आप ही देखिए:
युग धर्म के अनुसार भी मनुस्मृति 1/86 में *सत्य युग में तप, *त्रेता में ज्ञान,
द्वापर में यज्ञ कीऔर कलियुग में दान की प्रधानता मानी गई है।
तुलसी भी कहते हैं
प्रगट चारि पद धर्म के ,कलि मह एक प्रधान।
येनकेन विधि दीनें दान करे कल्याण।।
★तैत्तिरीय उपनिषद के अनुसार दान श्रध्दा से देना चाहिए, बिना श्रद्धा के नहीं। दान लज्जा पूर्वक देना चाहिए, (मीडिया में चित्र छपा कर नहीं), आर्थिक स्थिति अनुसार देना चाहिए×
^^^श्रध्दा व लज्जा सहित दान
^अहंकार सहित दान ,राजा रवि वर्मा की कृति
×श्रद्धया देयम्, अश्रद्धा अदेयम्;श्रिया देयम् ह्रिया देयम्…
–तैत्तरीय वल्ली एक,अनुवाक ग्यारह।
(श्रिया= अपनी आर्थिक स्थिति अनुसार, ह्रिया = लज्जा पूर्वक ।)
★एक बात और, जो हमें अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि ज्योतिर्विज्ञान की स्थिति धर्मशास्त्रों से ऊपर नहीं, इनके अधीन व इनके अंतर्गत ही है।
इसलिए कर्मफल पर धर्मशास्त्रों में जो सिद्धान्त स्थापित व मान्य हैं वही ज्योतिष को, वही हमें भी मानना चाहिए। धर्मशास्त्र के अनुसार कर्म फल अवश्यमेव भोगने होते हैं।
◆कुछ ही कर्म फल प्रायश्चित, तप, दान इत्यादि से कम या शमित हो सकते हैं,सभी कर्म मन्त्र जप दान पुण्यनहीं शांत नहीं होते पर इनकी तीव्रता कम हो सकती है ऐसा माना जाता है। कर्म फल पर उपनिषदों व धर्मशास्त्रों में गहन विवेचना है।
★कर्म की गति गहन है इसे समझ पाना कठिन है। गीता ४-१७ में स्वयं कृष्ण ने घोषित किया है:
गहना कर्मणो गतिः।_

जैमिनी कृत पूर्वमीमांसा दर्शन, योग दर्शन, वेदान्त दर्शन इत्यादि सभी में कर्म कर्मफल और इसके निरसन अर्थात शमन शान्ति पर विस्तृत विवेचन है।
प्रत्येक ज्योतिर्विद को इन शास्त्रों का व दर्शन आदि का ज्ञान होना चाहिए और स्वयं को कर्मफल बदलने वाले ब्रह्मा की भूमिका में आने से बचना चाहिए । पर यह सब अलग चर्चा का विषय है।
अब मूल प्रश्न पर फिर से आते हैं। मेरे विनम्र मत से मन्त्र जप अनुष्ठान आदि धर्मकृत्य को विधिवत सम्पन्न करना कराना ये सब व्यक्ति अपने संस्कार, श्रद्धा, अभ्यास, समय- सीमा, धन, योग्य पंडित पुरोहित की उपलब्धता इत्यादि कारणों से प्रभावित होते हैं ।
◆ऐसी स्थिति में श्रीमद्भागवत के इस कथन अनुसार सेवा कार्य से भी कर्मफल निरसन का प्रयास करना सर्वथा श्रेयस्कर है:
★शुश्रूषा धर्म सिद्धये★
अर्थात सेवा कार्य से ही धर्म पुरुषार्थ सिद्ध होता है (श्रीमद्भागवत स्कन्ध 3 अध्याय 6 श्लोक 33)
◆इस बात को ध्यान में रखते हुए मैंने ग्रहशांति के लिए ग्रह से संकेतित व्यक्ति व ग्रह की प्रकृति से जुड़े कार्यों की एक लघु सूची बनाई थी जो मैंने अपनी पुस्तक “ज्योतिर्विज्ञान में नए विचार और अनुप्रयोग”A के अध्याय। 4.9 में दी है।इसे पुनः यहाँ टाइप कठिन है।इसलिए इसके छाया चित्र दे रहा हूँ।
परन्तु एक अन्य प्रश्न के उत्तर में अपनी पुस्तक के पृष्ठ देने पर मेरा एक 235 अप वोट प्राप्त उत्तर जो -कलियुगकी वर्ष गणना पर था, एक “मित्र” ने वाद विवाद करते हुए कोरा पॉलिसी की आड़ में हटवा दिया था। इसलिए इस उत्तर को यदि उपयोगी समझें तो इसका प्रिंट ले लीजिएगा।
ग्रह शमन के लिए सेवा से ही धर्म की सिद्धि होती है इस भावना के अनुसार प्रत्येक ग्रह के लिए कु छ सेवा कार्यों की प्रारम्भिक सूची:
1—सूर्य से संकेतित कर्मफल शमन के लिए यह सेवा कार्य उपयुक्त हैं:
◆इसी क्रम में मैंने वर्ष में आने वाले विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दिवसों को उनकी प्रकृति के अनुसार ग्रह के प्रभाव क्षेत्र में लिया है ।
जैसे 14 जून विश्व रक्त दान दिवस को मङ्गल गुरु के प्रभाव का सेवा कार्य माना है ।तदनुसार जो पत्रिका अनुसार मङ्गल और गुरु की शांति करना चाहते हैं उन्हें या तो स्वयं रक्त दान करना चाहिए अथवा ऐसे शिविरों के आयोजन में तन मन धन से यथा शक्ति योग दान देना चाहिए।आजकी व्यस्तता की जिंदगी में इसे भी मङ्गल गुरु के लिए एक यज्ञ कार्य ही मानना चाहिए।
ग्रह की प्रकृति अनुसार इन दिवसों के उद्देश्यों में साम्य समानता स्थपित करते हुए इन दिवसों की सूची भी शीघ्र यहाँ संलग्न कर रहा हूँ। पर साथ ही पाठकों की प्रतिक्रिया की भी अपेक्षा तो रहेगी ही।
★विद्वजनों की टिप्पणियों की प्रतीक्षा रहेगी।
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⚜️ एकादशी तिथि के देवता विश्वदेव होते हैं। नन्दा नाम से विख्यात यह तिथि शुक्ल पक्ष में शुभ तथा कृष्ण पक्ष में अशुभ फलदायिनी मानी जाती है। एकादशी तिथि एक आनंद प्रदायिनी और शुभ फलदायी तिथि मानी जाती है। इसलिये आज दक्षिणावर्ती शंख के जल से भगवान नारायण का पुरुषसूक्त से अभिषेक करने से माँ लक्ष्मी प्रशन्न होती है एवं नारायण कि भी पूर्ण कृपा प्राप्त होती है।।
यदि एकादशी तिथि रविवार और मंगलवार को पड़ती है तो मृत्युदा योग बनाती है। इस योग में शुभ कार्य करना वर्जित है। इसके अलावा एकादशी तिथि शुक्रवार को होती है तो सिद्धा कहलाती है। ऐसे समय में किसी भी कार्य की सिद्धि प्राप्ति का योग निर्मित होता है। यदि किसी भी पक्ष में एकादशी सोमवार के दिन पड़ती है तो क्रकच योग बनाती है, जो अशुभ होता है। इसमें शुभ कार्य निषिद्ध बताये गये हैं। एकादशी तिथि नंदा तिथियों की श्रेणी में आती है। वहीं किसी भी पक्ष की एकादशी तिथि पर भगवान विष्णु की पूजा करना शुभ माना जाता है।।

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