धार्मिक

नीलकंठेश्व मन्दिर पर 5 दिवसीय यज्ञ एवं प्राण प्रतिष्ठा का आयोजन

ब्यूरो चीफ : शब्बीर अहमद
बेगमगंज । नीलकंठेश्व मन्दिर पर 5 दिवसीय यज्ञ एवं प्राण प्रतिष्टा का आयोजन किया गया । जिसमें मंदिर परिसर में राम दरवार , माता गयात्री, माता सरस्वती की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की गई। यज्ञ का आयोजन वाराणसी से आए आचार्य एवं वैदिक पंडिन्तो के द्वारा की गई। आयोजन में रामप्यारी बाई धाकड़ के द्वारा राम दरबार की स्थापना करवाई गई वही रामस्वरूप शर्मा पंडा जी के द्वा माता गायत्री जी एवं कालूराम राय ठेकेदार के द्वारा माता सरस्वती जी की स्थापना करवाई गई है। अंतिम दिवस यज्ञ का समापन पर प्रसादी का वितरण किया गया। जिसमें आज पास के ग्रामों के लोग शामिल हुए और धर्म लाभ उठाया।
मनुष्य, ईश्वर की बनाई सबसे सुंदर रचना है:- मनुष्य के द्वारा ईश्वर की मूर्ति का निर्माण करने के बाद उसमें ईश्वरीय गुण और ईश्वर की समस्त शक्तियों को समाहित करने के लिए वैदिक मंत्रों एवं अनेक विधि- विधान द्वारा प्राण- प्रतिष्ठा की जाती है। प्राण- प्रतिष्ठा में पाषाण मूर्ति में प्राणों का संचार हो जाता है और मूर्ति जिस भी देवी-देवता की है, वह भगवान बनकर भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। अयोध्या की पावन भूमि पर पौष शुक्ल द्वादशी, विक्रम संवत् 2080, सोमवार के शुभ लग्न मुहूर्त में 22 जनवरी 2024 को प्रभु श्रीराम लला की प्राण- प्रतिष्ठा हो जाने के बाद भगवान राम की जो सारी शक्तियां हैं, वे दिव्य शक्तियां मूर्ति में समाविष्ट हो जाएगी। प्राण-प्रतिष्ठा मंत्र -अनेक विधि- विधान, मंत्र, स्वस्तिवाचन आदि द्वारा भगवान का अभिषेक, पूजन किया जाता है। पत्थर से मूर्ति बनाते समय मूर्तिकार उसे अपनी छेनी-हथौड़ी से तराशता है, मूर्ति पर पॉलिश, रंग आदि किया जाता है और जिस जगह मूर्ति की स्थापना होनी है, वहां पर मूर्ति भेजी जाती है। प्राण-प्रतिष्ठा से पहले मूर्ति, मूर्ति बनाने वाले कलाकार की कृति होती है लेकिन प्राण- प्रतिष्ठा हो जाने के बाद पाषाण की मूर्ति में दिव्य चेतना का संचार होने से वह उस भगवान का विग्रह बन जाता है।
विधि विधान द्वारा मूर्ति को किया जाता है स्थापित:- प्राण-प्रतिष्ठा के बाद मूर्ति, मूर्ति नहीं रह जाती, भगवान बन जाती है और असंख्य श्रद्धालु भक्तों की भावना उससे जुड़ जाती है। प्राण-प्रतिष्ठा के पीछे वैदिक विज्ञान समाहित है, जल सर्वत्र है, सर्वत्र फैले जल को आवश्यकतानुसार एक जगह एकत्र किया जा सकता है, सर्वत्र व्याप्त हवा को घनीभूत किया जाता है, लैंस के माध्यम से सर्वत्र फैले प्रकाश को एक विशेष स्थान पर एकत्र किया जाता है। जल, वायु और प्रकाश की तरह ईश्वरीय तत्व सारे ब्रह्मांड में व्याप्त है, प्राण-प्रतिष्ठा, पूजन, विधि-विधान द्वारा ईश्वरीय तत्व को घनीभूत कर मूर्ति में स्थापित किया जाता है, जिसके लिए अनेक विधि- विधान, नियम-संयम शास्त्रों में वर्णित हैं।

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