धार्मिक

शरद पूर्णिमा महोत्सव आज, चांदनी में खुले आसमान में रखी जाती है खीर

सिलवानी। शरद पूर्णिमा का पर्व कल 20 अक्टूबर को मनाया जाएगा। मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा से अमृत बरसता है। यही कारण है कि इस दिन चंद्रमा की चांदनी को इतना महत्व दिया जाता है। इस मौके पर खीर वितरण के साथ महालक्ष्मी पूजन, महारास, भजन संध्या के आयोजन होंगे। ऐसा माना जाता है कि खीर में सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। ज्योतिष की मान्यता अनुसार संपूर्ण वर्ष में केवल इसी दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण होकर धरती पर अपनी अद्भुत छटा बिखेरता है। इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के अत्यंत समीप आ जाता है। इस दिन चंद्रमा अन्य दिनों की तुलना में अधिक बड़ा और चमकीला दिखता है। इसे लू मून के नाम से भी जाना जाता है। जन-जन में भगवान राम के मर्यादित चरित्र को पहुंचाने वाले महर्षि वाल्मीकि का जन्म भी त्रेता युग में इसी शरद पूर्णिमा को हुआ था। शरद पूर्णिमा महर्षि वाल्मीकि के प्रकाट्योत्सव के रूप में भी मनाना चाहिए। वर्षा विगत शरद ऋतु आई, लक्ष्मण देखहु परम सुहाई वह चैपाई है जिसे महाकवि गोस्वामी तुलसीदास ने अपने महान ग्रंथ श्री रामचरित मानस के किष्किन्धा काण्ड के अंतिम चरण में समाहित करते हुए भारतीय मौसम तंत्र की सुखद तदीली की ओर इंगित करने के साथ-साथ वर्षारानी की विदाई के साथ ही शरद की अगवानी का उल्लेख किया था। सदियों तक यह अद्र्घाली भारतीय मौसम पर सटीक भी साबित होती रही, लेकिन जैसे-जैसे मानव ने पर्यावरण के साथ खिलवाड़ शुरू किया महाकवि तुलसी की चौपाई अपने अर्थ बदलती प्रतीत हुई। परिणाम सामने है और जनजीवन अपने किए की सजा उस मौसम में भोग रहा है जिसे सामान्यतः मजेदार मौसम माना जाता रहा है। सामान्यतः इन दिनों वर्षा समाप्ति मानी जाती है, लेकिन इस वर्ष अब तक भी जोरदार बारिश बरकरार बनी हुइ है, कथित तौर पर शरद की अगवानी हो चुकी है, लेकिन भगवान भास्कर आम जनजीवन को राहत देने के मूड में कतई दिखाई नहीं दे रहे हैं।

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